रंग नहीं, रंग बदलने वालों से बचिए..

नरेंद्र पाण्डेय : व्यंग - जीवन में रंगों का बड़ा महत्व है। लाल, पीला, नीला, हरा — ये सब रंग हमारी दुनिया को खूबसूरत बनाते हैं। मगर कुछ "रंग बदलने वाले लोग"भी होते हैं जिन्हे देखकर समझ मे नहीं आता कि ये इंसान हैं या रंगों की दुकान, जो हर परिस्थिति के हिसाब से अपने रंग का शेड एडजस्ट कर लेते हैं। 

हमारे समाज में एक प्रजाति पाई जाती है जिसे मैं बड़े आदर से "रंग बदलू प्राणी" कहता हूं। ये प्राणी देखने में आम इंसानों जैसे ही होते हैं, लेकिन इनकी विशेषता यह है कि ये गिरगिट से भी तेज रंग बदलने में माहिर होते हैं। गिरगिट बेचारा तो परिस्थितियों के अनुसार रंग बदलता है, लेकिन ये महान आत्माएं स्वार्थ के अनुसार अपना रंग बदलती हैं। ये रंग बदलने वाले लोग हर जगह पाए जाते हैं — घर, दफ्तर, राजनीति और यहां तक कि मोहल्ले की पान की दुकान पर भी।   

इनकी पहचान बड़ी कठिन है। जब आपको सफलता मिलती है, तब ये आपको अपना परम मित्र, सगा संबंधी और कभी-कभी तो आत्मीय रिश्तेदार तक बना लेते हैं। परंतु जैसे ही आप किसी मुश्किल में फंसते हैं, ये तुरंत अपना रंग बदलकर "व्यस्त हूं", "अभी समय नहीं है" जैसे शब्दों की ओट में छुप जाते हैं। 

रंग बदलने वालों के लिए हर मौसम सुहावना होता है। जब आपको फायदा हो, तो ये आपके छायादार पेड़ बन जाते हैं, और जैसे ही आप कठिनाई में आते हैं, ये खुद को सूखी टहनी घोषित कर देते हैं। इनका सिद्धांत साफ होता है — "जहां लाभ, वहां सम्बंध।" 

रिश्तों में ऐसे लोग वही होते हैं, जो आपके सामने मुस्कुराकर मिलते हैं और पीठ पीछे आपकी बुराई का पंडाल सजाते हैं। मुसीबत में आपको देखकर ऐसे गायब हो जाते हैं जैसे मोबाइल की बैटरी 1% पर पहुंच जाए। जब आपका समय अच्छा होता है तो ये लोग आपको "भाई-भाई" या "बहन-बहन" कहते हैं, और जैसे ही हालात बिगड़ते हैं, ये आपको पहचानने से ही इनकार कर देते हैं। 

शादियों, पार्टियों और कार्यक्रमों में इनकी भूमिका विशेष होती है। अगर आपकी शादी भव्य हो रही हो, तो ये आपको बचपन का सबसे अच्छा दोस्त बताकर स्टेज पर फोटो खिंचवाएंगे। लेकिन अगर आपकी शादी साधारण तरीके से हो रही हो, तो इन्हें बढ़िया बहाना मिल जाता है — "अरे यार, उसी दिन मेरा ऑफिस का जरूरी काम था।" 

ऑफिस में तो इनकी संख्या इतनी होती है कि इन्हें पहचानने के लिए अलग से एक "रंग बदलू डिटेक्टर" की जरूरत पड़ती है। बॉस के सामने ये ऐसे विनम्र बन जाते हैं जैसे संत महात्मा हों, लेकिन उन्हीं के बाहर निकलते ही बॉस को ऐसे कोसते हैं जैसे क्रिकेट का फेल हुआ बैट्समैन अंपायर को कोसता है। 

राजनीति में इनकी प्रजाति और भी खतरनाक होती है। इनकी कला अपने चरम पर होती है। चुनाव के समय ये नेता के सबसे बड़े समर्थक बन जाते हैं और जैसे ही चुनाव हार जाता है, ये तुरंत विपक्ष के समर्थक बनकर उसे कोसने लगते हैं। इनकी जुबान पर हर समय "परिस्थिति के अनुसार दोस्ती" वाला सिद्धांत टंगा होता है।एसे ही कुछ हमारे नेता भी होते है जो चुनाव से पहले जनता के चरणों में बैठे नेता चुनाव जीतते ही ऐसे भाव दिखाते हैं जैसे जनता को पहचानते ही न हों। चुनावी मौसम में इनके वादों का रंग इंद्रधनुष को भी मात दे देता है।    

होली पर ये आपके दोस्त बनकर रंग लगाते हैं, और दिवाली आते-आते इनके चेहरे पर जलन का धुआं नजर आने लगता है। ये वो लोग होते हैं जो आपकी सफलता देखकर मिठाई खाते कम और कड़वी बातें बनाते ज़्यादा हैं।

अतः, मैं आप सभी से हाथ जोड़कर निवेदन करता हूं कि रंग नहीं, रंग बदलने वालों से बचें। अगर कोई व्यक्ति बार-बार अपनी बातें, विचार या रिश्तों में स्टैंड बदलता दिखे, तो समझ जाइए कि वो "रंग बदलने वालों का मास्टर क्लास" कर चुका है। 

मित्रों , समाज को असली रंगों की जरूरत है — प्रेम, विश्वास, ईमानदारी और सद्भाव के रंग । रंग बदलने वाले लोगों से सावधान रहने मे ही समझदारी है, वरना पता चला कि आपकी दुनिया का उजला रंग भी उनकी वजह से मटमैला हो गया । असली दोस्त वही होता है जो आपके हर मौसम में साथ खड़ा रहे, न कि वह जो आपके धूप-छांव के हिसाब से अपना रंग बदल ले। 

"जो इंसान हर मौसम में आपके साथ हो, वही सच्चा मित्र है। 

जो मौसम देखकर रिश्ते निभाए, वो गिरगिट का मौसेरा भाई है।"* 

तो दोस्तों, सावधान रहिए और रंग बदलने वालों से दूर रहिए। वरना ये लोग आपके जीवन का पेंटिंग बना देंगे — कभी काला, कभी सफेद, और कभी रंगीन।