छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के 10 फरवरी 2025 को दिए गए फैसले ने मैरिटल रेप और
अप्राकृतिक यौन संबंधों को लेकर एक नई बहस को जन्म दिया है। इस फैसले में कोर्ट ने
कहा कि यदि पत्नी की उम्र 15 साल
या उससे अधिक है, तो
पति का अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं माना जाएगा। इसके साथ ही,
यदि पति ने अप्राकृतिक कृत्य किया हो,
तो उसे अपराध नहीं माना जाएगा। यह फैसला
कानूनी विशेषज्ञों और महिला अधिकार कार्यकर्ताओं के बीच गंभीर विवाद का कारण बन
गया है।
पूरा मामला
यह मामला बस्तर जिले के एक 40 वर्षीय व्यक्ति से जुड़ा है, जिस पर आरोप था कि उसने अपनी पत्नी के
साथ जबरन अप्राकृतिक यौन संबंध बनाए, जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गई। आरोपी पति पर आईपीसी की धारा 376
(बलात्कार), 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध) और 304 (गैर-इरादतन हत्या) के तहत मामला दर्ज
किया गया था। पीड़िता ने अपनी मौत से पहले इस घटना पर बयान दिया था, जिसमें उसने कहा कि पति द्वारा बलपूर्वक
बनाए गए यौन संबंध के कारण वह गंभीर रूप से बीमार हो गई थी।
हालांकि, निचली अदालत ने आरोपी को दोषी ठहराते
हुए 10 साल की सजा सुनाई थी,
लेकिन आरोपी ने इस फैसले के खिलाफ हाई
कोर्ट में अपील की थी। हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को खारिज करते हुए आरोपी
को बरी कर दिया, यह
कहते हुए कि यदि पत्नी की उम्र 15 साल
या उससे अधिक है, तो
पति द्वारा यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं माना जा सकता।
कानूनी और सामाजिक
प्रतिक्रिया
इस फैसले के बाद, विभिन्न महिला अधिकार कार्यकर्ताओं और
कानूनी विशेषज्ञों ने कड़ी आपत्ति जताई है। वरिष्ठ अधिवक्ता करुणा नंदी ने कहा कि
नया भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) मैरिटल रेप के मामले में स्पष्टता नहीं प्रदान
करता, और सुप्रीम कोर्ट में
इस मुद्दे पर याचिका दायर की गई है।
मध्य प्रदेश के वकील राजेश चांद का कहना
है कि इस मामले में अप्राकृतिक यौन संबंधों को लेकर स्पष्टीकरण की जरूरत है,
खासकर समलैंगिक विवाहों और पारंपरिक
विवाहों के बीच भेदभाव को देखते हुए। वहीं, महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली
वकील राधिका थापर ने इस फैसले को पितृसत्तात्मक समाज की दिशा में एक और कदम बताया,
जिसमें महिलाओं को केवल एक वस्तु के रूप
में देखा जाता है।
आरआईटी फाउंडेशन की संस्थापक डॉ. चित्रा
अवस्थी ने कहा कि महिलाएं अब तक शादी के बाद यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाती रही
हैं, और समय आ गया है कि
बलात्कार से जुड़े कानूनों पर पुनः विचार किया जाए। उनके अनुसार, यह फैसले महिला की स्वायत्तता और
अधिकारों के खिलाफ हैं।
नया भारतीय न्याय
संहिता (बीएनएस) और मैरिटल रेप
1 जुलाई 2024 से लागू हुए भारतीय न्याय संहिता
(बीएनएस) में भी वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं माना गया है। बीएनएस में आईपीसी
की धारा 377 के समान कोई प्रावधान
नहीं है, जो गैर-सहमति से किए
गए अप्राकृतिक यौन संबंध को अपराध घोषित करता हो। केंद्र सरकार का तर्क है कि
वैवाहिक बलात्कार के खिलाफ कड़े दंडात्मक प्रावधान लागू करने से व्यापक सामाजिक और
वैधानिक प्रभाव पड़ सकता है।
क्या सुप्रीम कोर्ट
के फैसले तक यह सवाल बना रहेगा?
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का यह फैसला महिलाओं के यौन स्वायत्तता और अधिकारों पर जोर देने वाले सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों के बावजूद, वैवाहिक संबंधों में पत्नी की सहमति को महत्वहीन बनाता है। इस फैसले ने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या पति को पत्नी के साथ जबरदस्ती यौन संबंध बनाने पर कोई सजा नहीं मिलेगी? इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय तब तक संभव नहीं होगा जब तक सुप्रीम कोर्ट इस पर अपना फैसला नहीं सुनाता।
यह फैसला भारतीय कानून में महिलाओं के
अधिकारों की सुरक्षा और यौन हिंसा के प्रति संवेदनशीलता पर सवाल उठाता है। समाज
में महिलाओं की स्थिति और उनके अधिकारों को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए और कानूनी
बदलावों की आवश्यकता महसूस होती है। इस मामले ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है
कि महिलाओं के अधिकारों और उनके यौन स्वायत्तता की सुरक्षा के लिए कानूनी सुधार
आवश्यक है।