बेड़ियों में जकड़े भारतीय: अपमान, कूटनीति और सरकार की नाकामी


भारतवासियों ने इससे पहले कभी ऐसा अपमानजनक दृश्य नहीं देखा था—104 भारतीय नागरिकों को हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड़कर अमेरिकी सैन्य विमान से भारत भेजा गया। ये प्रवासी किसी खूंखार अपराधी की तरह बंधे हुए थे, जैसे उन्होंने कोई गंभीर अपराध किया हो। लेकिन उनका अपराध सिर्फ इतना था कि वे अमेरिका में बेहतर जीवन की तलाश में अवैध रूप से रह रहे थे।

 अमेरिका, कनाडा और अन्य पश्चिमी देशों में लाखों लोग कानूनी और अवैध तरीकों से रोज़गार की तलाश में जाते हैं। इन देशों में प्रवासियों को एजेंटों के माध्यम से भारी कीमत चुकाकर पहुँचाया जाता है। हालांकि, अवैध प्रवासियों को पकड़कर वापस भेजने की घटनाएँ आम रही हैं, लेकिन भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा दृश्य सामने आया, जब 5 फरवरी को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आदेश पर 104 भारतीय नागरिकों को हथकड़ी और बेड़ियों में जकड़ कर सैन्य विमान के ज़रिए भारत भेजा गया। यह घटना न केवल शर्मनाक थी, बल्कि भारत सरकार की कूटनीतिक कमजोरी को भी उजागर करती है।

प्रवासी भारतीयों के साथ अमानवीय व्यवहार अमेरिका और कनाडा में लाखों प्रवासी अवैध रूप से रहते हैं, लेकिन उन्हें कभी भी अपराधियों की तरह जंजीरों में जकड़ कर नहीं भेजा गया। जब अमेरिका ने कोलंबिया के नागरिकों को इसी तरह भेजने की कोशिश की, तो कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो ने अमेरिकी सैन्य विमान को अपनी धरती पर उतरने नहीं दिया। इसके विपरीत, भारत सरकार ने अमेरिकी विमान को पंजाब में उतरने की अनुमति दे दी, जिससे भारतीय नागरिकों को अपमानजनक तरीके से वापस भेजा गया। कोलंबिया ने अपने नागरिकों के लिए यात्री विमान भेजा और उन्हें सम्मान के साथ वापस लाया।

भारत सरकार की चुप्पी और मीडिया की भूमिका यह घटना भारतीय नागरिकों के लिए शर्मनाक थी, लेकिन उससे भी अधिक शर्मनाक था भारतीय सरकार की चुप्पी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। गोदी मीडिया ने सरकार की इस कमजोरी को छिपाने की कोशिश की और इसे सामान्य निर्वासन बताने की कवायद में लग गई। अमेरिका ने मैक्सिको, कोलंबिया और ग्वाटेमाला के नागरिकों को भी निर्वासित किया, लेकिन इन देशों ने इसका कड़ा विरोध किया। भारत ने न केवल विरोध करना उचित नहीं समझा, बल्कि अमेरिकी सैन्य विमान को चुपचाप पंजाब में उतरने की अनुमति भी दे दी।

यह पहली बार नहीं है कि अमेरिका ने भारतीय नागरिकों के साथ अपमानजनक व्यवहार किया है। ट्रंप प्रशासन के दौरान भी कई भारतीयों को निर्वासित किया गया था, लेकिन इस बार जो हुआ, वह ऐतिहासिक रूप से शर्मनाक है। अमेरिका ने चीन के अवैध प्रवासियों को कभी भी इस तरह नहीं निकाला, क्योंकि वह जानता है कि चीन अपने नागरिकों के सम्मान की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।

चीन की कूटनीतिक ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अगर किसी चीनी नागरिक के साथ कोई अन्याय होता है, तो चीन जवाबी कार्रवाई करता है। सम्मानित कूटनीतिक पत्रिका Foreign Policy की रिपोर्ट के अनुसार, चीन की जेलों में 5,000 से अधिक विदेशी कैदी हैं, जिनमें सबसे अधिक अमेरिकी नागरिक हैं। यह चीन की रणनीतिक ताकत को दर्शाता है।

लेकिन भारत? भारत ने अमेरिकी सैनिक विमान को अपनी जमीन पर उतरने दिया, बिना कोई आपत्ति जताए। यह स्पष्ट करता है कि मोदी सरकार अमेरिका से डरती है और ट्रंप को ‘दोस्त’ कहने का उनका नाटक सिर्फ एकतरफा है।

चीन और अन्य देशों की कूटनीति से तुलना  चीन अपने नागरिकों की सुरक्षा और सम्मान के लिए कड़ा रुख अपनाता है। यदि किसी चीनी नागरिक के साथ विदेश में दुर्व्यवहार होता है, तो चीन संबंधित देश के नागरिकों को गिरफ्तार कर जवाब देता है। यही कारण है कि अमेरिका चीनी प्रवासियों के साथ ऐसा व्यवहार करने से बचता है। लेकिन भारत सरकार अपने नागरिकों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार पर खामोश रहती है। ब्राजील सरकार ने जब अपने 88 नागरिकों को हथकड़ी लगाकर भेजे जाने की खबर सुनी, तो उन्होंने तुरंत अमेरिकी सरकार से स्पष्टीकरण मांगा। वहीं, मैक्सिको ने अमेरिकी सैन्य विमान को लैंड करने से रोक दिया। भारत अगर ऐसा करता तो उसकी भी छवि मजबूत होती।

भारतीय प्रवासियों की स्थिति और आंकड़े  प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, अमेरिका में करीब 7.25 लाख अवैध भारतीय प्रवासी हैं। हाल के वर्षों में कनाडा की सीमा से भी बड़ी संख्या में भारतीय बिना दस्तावेज़ों के अमेरिका में घुसने की कोशिश कर रहे हैं। 30 सितंबर तक, अमेरिकी बॉर्डर पेट्रोल ने 14,000 से अधिक भारतीयों को गिरफ्तार किया, जो अवैध रूप से प्रवेश करने की कोशिश कर रहे थे। इनमें से अधिकांश पंजाब और गुजरात से थे।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर द्वारा संसद में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, 2009 से 2023 तक विभिन्न वर्षों में हजारों भारतीयों को अमेरिका से निर्वासित किया गया। 2019 में 2,042 भारतीयों को वापस भेजा गया था, जो अब तक की सबसे बड़ी संख्या थी। लेकिन 2024 में पहली बार भारतीय नागरिकों को अपराधियों की तरह बेड़ियों में जकड़ कर भेजा गया।

इस पूरे प्रकरण ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारत की वर्तमान सरकार अमेरिका से समानता के आधार पर संबंध स्थापित करने में असमर्थ है। एक राष्ट्र की संप्रभुता और उसके नागरिकों के सम्मान की रक्षा करना किसी भी सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी होती है। लेकिन मोदी सरकार इस जिम्मेदारी को निभाने में पूरी तरह विफल रही है।

डोनाल्ड ट्रंप ने मोदी को ‘दोस्त’ कहा, लेकिन भारतीय नागरिकों को अपराधियों की तरह जंजीरों में जकड़ कर वापस भेज दिया। यह घटना दिखाती है कि भारत सरकार अमेरिकी दबाव में झुकने के लिए तैयार है, लेकिन अपने नागरिकों के सम्मान की रक्षा करने में विफल है। चीन, कोलंबिया और मैक्सिको जैसे देशों की तरह यदि भारत ने भी अपने नागरिकों की गरिमा के लिए कड़ा रुख अपनाया होता, तो शायद यह अपमानजनक स्थिति उत्पन्न नहीं होती। भारत सरकार को चाहिए कि वह इस घटना पर अमेरिकी प्रशासन से स्पष्टीकरण मांगे और अपने नागरिकों की सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करने के लिए ठोस कूटनीतिक कदम उठाए।

आज, जब देश ‘विकास’ और ‘आत्मनिर्भरता’ के दावों में उलझा है, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अगर हमारे नागरिकों का सम्मान विदेशों में सुरक्षित नहीं है, तो हम कितने भी बड़े आर्थिक दावे कर लें, वे खोखले ही साबित होंगे। सरकार को चाहिए कि वह इस घटना पर अमेरिका से स्पष्ट स्पष्टीकरण मांगे और यह सुनिश्चित करे कि भविष्य में कोई भी भारतीय नागरिक इस तरह के अपमानजनक व्यवहार का शिकार न हो।

भारत को अब यह तय करना होगा कि वह एक संप्रभु, सम्मानित राष्ट्र बनेगा या अमेरिका का सिर्फ एक ‘अनुग्रहशील सहयोगी’ बनकर रहेगा।