महिलाओं के साथ दरिंदगी में सिकती राजनितिक रोटियाँ


नरेन्द्र पाण्डेय :   पिछले दिनों से कोलकाता में एक महिला डाक्टर की दुष्कर्म के बाद हत्या चर्चा में है। एक महिला  डाक्टर के साथ अपराध वहां किए गया , जहां वह काम करती थी। क्यों सड़कें, घर, अस्पताल, दफ्तर, महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं हैं। महाराष्ट्र के थाणे में 4 से 6 वर्ष की बालिकाओं का प्ले स्कूल में यौन शोषण, जैसी घटनाएं रोजाना हो रही है कुछ मीडिया की सुर्खियाँ बनती है तो कुछ सिस्टम और समझौतों के चादर में छुप जाती है . समाज में हो क्या रहा है ? समाज में महिलाओं की जगह क्या है ? यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः  की फिलोसफी को मानने वाले हम सनातानीय भारतियों में खून के रिश्तों से बड़ा दिल का रिश्ता होता है। प्यार, मोहब्बत, आकर्षण, बंदिशे, झगड़ा ये सब होता है। कच्ची उम्र में शरारतें भी होती हैं पर इसके बावजूद भी एक संस्कार होता है जो लक्ष्मण रेखा पार करने की ईजाजत नहीं देता। फिर एसी पाशविक घटनाए दिल दहला देती है . इन पर विचार किया तो कुछ प्रमुख कारणों पर मेरा ध्यान गया ...

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फिल्मो विज्ञापनो का मनोरंजन और आधुनिकता के नाम पर अशलीलता परोसना. धीमी कानून प्रक्रिया लोगो को कानून का ड़र ही नही है. देर से मिला हुआ न्याय अनयाय के समान ही है. रेप जैसी घटना होने पर जिसमे लड़की की गलती न होने पर भी समाज मे उसे घृणा की दृष्टी से देखा जाना. स्त्री को केवल भोग की वस्तु समझने वाले लोगो का समाज का हिस्सा होना।रेप जैसी भयानक घटना का बड़े मंत्री और वकीलो का द्वारा हल्के मे लिया जाना. लोगो का धर्म विमुख होना और गलत सही मे अंतर न समझना तथा पोर्न विडियो आदि से लोगो में वासना का बढते जाना है

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16 दिसम्बर 2012 दिल्ली का निर्भया कांड आप अभी भी भूले नहीं होगे जिसके बाद दिल्ली में तेज आंदोलन हुआ था। उस समय सारा विपक्ष निर्भया के समर्थन में उतर आया था। और एक बेहद गरिमामय मुख्यमंत्री शीला दीक्षित चुनाव हार गई थीं। लेकिन कोलकाता के केस में ममता बनर्जी की सरकार और विपक्ष का बड़ा तबका अगर-मगर कर रहा है। देशभर में डाक्टरों के स्वतः स्फूर्त आंदोलनों को केंद्र की सत्ताधारी पार्टी से जोड़ा जा रहा है। यहां तक कि डाक्टरों को बीजेपी का सपोर्टर बताया जा रहा है। कितने अफसोस की बात है कि शीला दीक्षित को तो बार-बार इस छड़ी से पीटा गया था कि एक महिला मुख्यमंत्री के राज्य में ऐसा हुआ। उन्हें निर्भया को श्रद्धांजलि देने तक से रोक दिया गया था। लेकिन बंगाल के मामले में लोगों ने चुप्पी साध रखी है। यही नहीं, निर्भया के बारे में जो तर्क दिए गए थे कि वह इतनी रात बाहर निकली ही क्यों थी। जैसे कि लड़कियां रात में बाहर निकलेंगी तो पुरुषों को यह अधिकार मिल जाएगा कि उनके साथ कुछ भी करो। दुष्कर्म करो, उन्हें मार डालो। कोलकाता में भी ऐसे ही तर्क सत्ताधारी दल के द्वारा दिए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि वह लड़की सेमिनार रूम में उस वक्त क्या कर रही थी।

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अपराधी से कोई सवाल नहीं पूछे जा रहे कि वह वहां क्या करने गया था। कई लोग यह भी कह रहे हैं कि यह मामला मानव अंगों की तस्करी से जुड़ा है। इसमें बहुत से लोग शामिल हैं। महिला डाक्टर को इस बारे में पता चल गया था, वह इसकी शिकायत भी करना चाहती थी, इसलिए उसे खत्म कर दिया गया। सच जो भी हो, लेकिन एक स्त्री ने वहां जान गंवाई है, जहां वह काम करती थी। आखिर उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी अस्पताल प्रशासन की क्यों नहीं थी। उसके माता-पिता को तीन घंटे तक उसके शव को क्यों नहीं देखने दिया गया। अज्ञात लोगों ने बड़ी संख्या में आकर अस्पताल में तोड़-फोड़ क्यों की। बहुत से सवाल हैं जो अनुत्तरित हैं। सबसे ज्यादा तकलीफ कोलकाता के सत्ताधारी दल के नेताओं द्वारा दिए गए बयानों से हो रही है।

क्या सचमुच हमारे राजनेता, जिनमें स्त्री हों या पुरुष, अपनी-अपनी सत्ता बचाने के लिए इतने अमानवीय हो गए हैं। औरतें सहज शिकार हैं और उनसे कोई सहानुभूति भी नहीं। निर्भया कांड के बाद नए रेप कानून की मांग की गई थी कि उसे इतना कठोर बनाया जाए कि अपराधियों की रूह कांपे। कानून बना, मगर ऐसा हो नहीं सका है। सोचें कि जब पढ़ी-लिखी स्त्रियों के साथ सरेआम ऐसा हो रहा है, तो उन गरीब स्त्रियों का क्या, जिनकी पहुंच न पुलिस तक होती है, न कानून तक। कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों की पोस्ट पढ़कर तो लगता है कि ये भी इंसान कहलाने के लायक नहीं। एक आम तर्क यह दिया जा रहा है कि कोलकाता पर बोलने वाले उत्तराखंड के दुष्कर्म पर क्यों नहीं बोले, मणिपुर पर क्यों चुप रहे। मान लीजिए कि कोई उस वक्त नहीं बोला, तो क्या इस वक्त उसने अपने बोलने के अधिकार को किसी के पास गिरवी रख दिया कि जब आपकी राजनीति को सूट करे तब आपसे पूछकर कोई बोले। देश में इन दिनों या तो आप पक्ष में हो सकते हैं, या विपक्ष में। बीच की वह रेखा मिटा दी गई है जहां जब कोई दल अच्छा काम करे, तो उसकी तारीफ की जाए और बुरा करे तो निंदा।

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आखिर काम-काज की जगह पर स्त्रियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेने से क्यों बचना चाहिए। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर स्वतः संज्ञान लिया है, तो इस पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। क्या महिला और महिला के दुष्कर्म में फर्क होता है। महिलाओं के प्रति अपराध कहीं भी हों, देश में किसी भी सत्ताधारी दल की सरकार हो, वह निंदनीय है। लेकिन उंगली अक्सर दूसरे की तरफ ही उठती है।दफ्तरों में यौन प्रताड़ना की निगरानी करने वाली कमेटियां सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर महिला सुरक्षा के लिए ही बनाई गई थीं। क्या कोलकाता की डाक्टर के साथ हुआ अपराध इस श्रेणी में नहीं आता। दिल्ली में जब एक महिला की घर से कुछ दूर रात में हत्या कर दी गई थी, तब से यह कानून बनाया गया था कि रात में जो कैब महिला को छोड़ने जाएगी, वहां उसके साथ दफ्तर का कोई आदमी होगा, जो उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करेगा। यही नहीं, जब तक महिला अपने घर के अंदर नहीं चली जाएगी, तब तक कैब वहां से नहीं जाएगी। डाक्टर जो बहत्तर-बहत्तर घंटे ड्यूटी करते हैं, उन्हें सड़क पर तो छोड़िए, अपने काम-काज के स्थान पर सुरक्षा न मिले तो यह कितनी खतरनाक बात है।

महिला डाक्टर की हत्या के मामले को सीबीआई को सौंप दिया गया है। सीबीआई जांच में जो कुछ भी पाए, वह लड़की जिसके माता-पिता ने उसे डाक्टर बनाया, उसके परिश्रम ने भी उसका साथ दिया, वह तो अब वापस आने से रही। आज जब बड़ी संख्या में लड़कियां काम-काज के लिए बाहर निकल रही हैं, तब सत्ताधारियों द्वारा उनकी हस्ती को मिटा देने के ऐसे षड्यंत्र क्यों सफल हों। कायदे से तो महिलाओं को अपनी सुरक्षा की आवाज के तहत उन दलों से सवाल पूछने चाहिए। पितृसत्ता-पितृसत्ता चिल्लाइए और जब मौका मिले उसकी आड़ में या अपने-अपने दलों की आड़ में छिप जाइए, यह कितना शर्मनाक है।


बंगाल हो या महाराष्ट्र, मणिपुर हो या गुजरात, उत्तरभारत हो या दक्षिण भारत जो नृशंस घटनाएं पिछले कुछ वर्षों में घटित हुई हैं और अभी भी जारी हैं उस आधार पर लड़कियां असुरक्षित ही हैं । एक बेटी का पिता तो अब यही सोच रहा है और पूरा देश आज ये सोचने को विवश है कि ऐसी घटनाएं कब तक घटित होती रहेंगी ।

मै खुद से यह सवाल नित्य प्रतिदिन पूछ रहा हूं । मन बड़ी उपापोह में था क्या जवाब दूं क्योंकि भारत में मेरा परिवार भी आता है और जब अपने स्वजन कि कन्याओं को देखता हूं तो मन करता है कि कुएं के मेंढ़क की तरह बोल दू जी बिल्कुल सुरक्षित है । फिर वो सब सामने आ जाता है जो नहीं भूला जा सकता है जैसे दिल्ली, हैदराबाद, बारांबंकी ,हाथरस हर जगह ये सब रोज हो गया है और हम इसे रोजाना एक खबर मान लेते है ।ये जो बलात्कार जैसे जघन्य अपराध आज समाज में हो रहे हैं इसके पीछे की सबसे बड़ी वज़ह संस्कार की कमी है। वहशीपन और मानसिक दीवालियापन ने आज समाज को गंदा कर दिया है। बच्चो को कैरियर ओरिएंटेड बनानने के साथ साथ संस्कारों के पाठ पढ़ाना भी जरुरी है . राम राज्य के लिए केवल मंदिर बनाने से या तीर्थ यात्रा कराने से नहीं अपितु राम और कृष्ण का आदर्श बताना होगा . समय मात्र नारे लगाने का नहीं चिंतन करने का है एक सामूहिक जवाबदारी का है , इक्षा शक्ति का है क्योंकि घटना समाज में घटी है और आप हम सभी इस समाज के हिस्सा है . हम भी उतने ही जवाबदार है दुष्यंत कुमार जी की ये लाइने आज भी प्रासंगिक है :-

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

 

 

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