आपन सोचा होइ नहीं, प्रभु सोचा तत्काल :
SCG NEWS, नरेंद्र पाण्डेय : मित्रो सच ही है हम चाहे कितना भी बढ़िया सोच ले पर होगा वही जो ईश्वर की कृपा होगी जो प्रभु चाहते हैं. लोकतंत्र में जनता को ही जनार्दन कहा गया है जनार्दन यानी ईश्वर... प्रभु. नेता चाहे कितना भी सोच ले अपने हिसाब से बेहतर करने की पर होगा वही जो जनता चाहेगी . इस चुनाव में भी जनता जनार्दन ने अपना निर्णय दे दिया.
अब देखिए ना चुनाव घोषित होने के पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार प्रचार प्रसार कर रहे थे, जी तोड़ मेहनत कर रहे थे, बिना रुके बिना थके. शायद उनका उद्देश्य यही रहा होगा कि अब जो तीसरी बार सरकार आएगी वह और मजबूत सरकार होगी ताकि जो भी देश हित में फैसला लेने का उन्होंने सोच रखा था ,जो काम उन्हें करने थे उसे निर्विवाद रूप से पूरा किया जा सके. लेकिन लगता है कि जनता को कुछ और ही मंजूर था. जो मेहनत प्रधानमंत्री ने चुनाव प्रचार के दौरान की थी कि अब पूरे 5 साल भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार चलेगी वह जनता जनार्दन के आदेश अनुसार गठबंधन सरकार में परिणीति हो गई.
अब जब गठबंधन सरकार बन रही है तो इसमें अक्सर ऐसा होगा यह की कभी किसी सहयोगी दल को कोई आपत्ति होगी तो कभी किसी सहयोगी दल को किसी और चीज की समस्या, सभी दलों की एक-एक आपत्ति और समस्याओं को हल करते हुए सरकार चलाना होगा हालांकि प्रधानमंत्री को गठबंधन सरकार चलाने में कुछ ज्यादा मेहनत नहीं होगी क्योंकि उनके दो बड़े सहयोगी चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार है लेकिन तकलीफ एक बात की जरूर होगी क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसी भी गठबंधन सरकार चलाने का पूर्व अनुभव नहीं रहा है .12 वर्षों तक वह जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री रहे हो या 10 वर्षों तक देश के प्रधानमंत्री , भारतीय जनता पार्टी इन सभी जगह पर पूर्ण बहुमत के साथ रही है इसलिए इन्हें मान मनौवल करना आया ही नहीं और यह जो निर्णय लेते रहे वे बोल्डली लेते रहे है और उन डिसिजनों को उनके सहयोगियों को मानना पड़ता था. उदाहरण के लिए आप कश्मीर से 370 हटाने की बात करें या किसान आंदोलन को दबाने की बात .
अब बात करते हैं इनके दो प्रमुख सहयोगियों की वे है नीतीश कुमार बिहार से और आंध्र प्रदेश से चंद्रबाबू नायडू. निश्चित तौर पर यह दोनों नेता अपने राज्यों में विकास चाहते हैं और विकास कार्यों के लिए इन्हें तो केंद्र पर ही निर्भर होना पड़ेगा. बिहार में तो अगले वर्ष ही विधान सभा चुनाव होने वाले हैं और चुनाव के पूर्व नीतीश अपने राज्य में विकास की कई नई योजनाओं को लाना चाहते होंगे जो जनहित के हो, जिससे उनकी सरकार की छवि बनती हो, इसके लिए कदम कदम पर उन्हें प्रधानमंत्री के सहयोग की आवश्यकता होगी इसलिए किसी के पलटी करने के फिलहाल कोई गुंजाइश यहां नज़र नहीं आती है. मुझे लगता है कि सरकार अभी तो निर्विवाद रूप से चलती रहेगी. हां प्रश्न उठेगा की फिर उन मुद्दों का क्या होगा जो भारतीय जनता पार्टी ने अपने तीसरे कार्यकाल के लिए पहले से ही तय कर रखे हैं. निश्चित रूप से वह सब काम उस गति से तो नहीं चल पाएंगे जो भाजपा सरकार ने सोच रखी थी . कुछ कामों में देरी होगी. हो सकता है कि कुछ कार्य कुछ समय के लिए ठंडे बस्ते में डालना पद जाय . लेकिन इतना तो तय है कि लोक कल्याण के काम अच्छे से होते रहेंगे और इनमें कोई अड़चन नहीं आने वाली. बरहाल नरेंद्र मोदी को nda अलायेंस का नेता चुन लिया गया है उन लोगों ने सहयोगी दलों के साथ राष्ट्रपति भवन जाकर सरकार बनाने का दावा भी पेश किया है 9 जून को नरेन्द्र मोदी पूरे मंत्रिमंडल के साथ शपथ लेंगे तब तक मंत्रिमंडल के गठन और उसमें अपनी हिस्सेदारी की सहयोगी दलों की मांगों को भी सुलझा लिया जाएगा और बहुत हद तक यह संभव है कि सब कुछ तय हो ही चुका होगा .फिर भी बहुत से लोगों को यह विश्वास नहीं आ रहा है और उनका यह मानना है कि चंद्रबाबू नायडू और खासकर नीतीश कुमार तो कभी भी पल्टी मार सकते हैं तो उन्हें जानकारी होनी चाहिए की 10 निर्दलीय सांसदो ने भी NDA को मतलब नरेंद्र मोदी को अपना समर्थन दिया है.
फिर ये मत भूलिए कि 12 सांसदो वाली उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना भी है जो पूर्व में एनडीए के ही सहयोगी दल रहे हैं यदि भाजपा के नेता उद्धव ठाकरे को चुनाव पूर्व गठबंधन करके उन्हें मुख्यमंत्री पद ऑफर कर देते हैं तो पूरी संभावना है कि दोनों शिवसेना एक साथ आ जाए और केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के साथ बनी एनडीए गठबंधन की सरकार को मजबूती दे देगे. देश को यह भी याद रखना चाहिए की 1991 में 235 सीटों वाली कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार पूरे पांच वर्ष चली थी जबकि नरसिम्हा राव ज्यादा लोकप्रिय नेता भी नहीं थे. मोदी के पास तो 242 सीटें हैं और वे वर्तमान में सबसे लोकप्रिय नेता भी .
इसलिए 2024 में बनने वाली यह जो एनडीए की सरकार है मुझे नहीं लगता कि किसी भी प्रकार के खतरे में आने वाली है.वैसे राजनीति संभावनाओं का खेल है और संभावनाएं उसके पक्ष में अधिक होती है जिसके पास संख्या बल होता है. देश के मतदाताओं ने जो स्पष्ट जनादेश दिया है उसे लगता है कि मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में वह पसंद तो करते हैं लेकिन उनकी जो अधिनायक वाली सोच उनको मंजूर नहीं. क्या अमित शाह और नरेंद्र मोदी के लिए इसे एक चेतावनी की घंटी समझा जा सकता है ?. इस चुनाव में एक ख़ास बात रही वो ये कि कोई लूजर नहीं रहा है. सब ने कुछ ना कुछ जरूर पाया है, भाजपा को सबक मिला है तो कांग्रेस को उत्साह, सपा को उम्मीदें,चुनाव आयोग और evm को दोषों -आरोपों से मुक्ति. हारा तो केवल अहंकार है.
चलते चलते गोस्वामी तुलसीदास का ये दोहा आपके नाम
नहिं कोउ अस जन्मा जग माहीं |
प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं ||
राम राम