मैनेजर ने लिया मालिक का बदला



       SCG NEWS . नरेंद्र पाण्डेय :   केंद्रीय मंत्री एवं बीजेपी की अमेठी से प्रत्याशी स्मृति ईरानी की हार की चर्चा राजनीतिक गलियारे में खूब हो रही है  चर्चा है कि जिस स्मृति ईरानी ने साल 2019 में राहुल गांधी जैसे नाम चीन नेता को गांधी – नेहरु परिवार की सुरक्षित सीट अमेठी से 55 हजार मतों से हरा दिया था, वही स्मृति ईरानी पांच सालों में 1 लाख 60 हजार से अधिक मतों से चुनाव कैसे हार गईं. यहां तक कि बीजेपी के दो विधायक, राज्य मंत्री और जिला पंचायत अध्यक्ष के इलाके में भी स्मृति ईरानी को हार का सामना करना पड़ा. दरअसल दूसरे बीजेपी नेताओं और मंत्रियों की तरह स्‍मृति को यह लगा था कि राम म‍ंदिर की सीढ़ियों से चुनाव जीतने का दोतिहाई रास्‍ता तो तय हो गया है, बाकी एक तिहाई का काम अमेठी में उनका गृहप्रवेश कर देगा . याद है न आपको 22 फरवरी के दिन जब स्‍मृति ईरानी ने अमेठी के अपने घर का गृहप्रवेश करा था . माथे पर कलश लेकर पारसी पति जुबिन ईरानी के साथ अपने नए घर में कदम रखा. उज्‍जैन से आए पंडितों ने पूरे विधिविधान के साथ हवनपूजन कराया था. उन दिनों स्‍मृति ईरानी को शायद यह महूसस हुआ हो कि अमेठी की जनता के दिल में उतरने के लिए यह सबसे बेहतर तरीका है लेकिन चुनाव के नतीजों ने उनकी सोशल इंजीनियरिंग की पोल खोल दी. हालांकि किशोरी लाल शर्मा से चारों खाने चित होने के बाद भी  स्‍मृति की अकड़ कम होने का नाम नहीं ले रही, नतीजे आने के बाद हुए प्रेस कौन्फ्रेंस के दौरान स्‍मृति ने कहा कि “उनका जोश अभी भी हाई है”, स्‍मृति का यही एटीट्यूड असल में उनको ले डूबा. साल 2023 में अमेठी लोकसभा क्षेत्र में वे एक पत्रकार के ऊपर जबरदस्‍त भड़क गई थीं, पत्रकार विपिन यादव का कसूर सिर्फ इतना था कि उसने केंद्रीय मंत्री से एक बाइट मांगी थी, इस पर स्‍मृति ने कहा था, “अगर आप मेरे क्षेत्र का अपनाम करेंगे, तो मैं आपके मालिक से फोन करके कहूंगी”  इसके बाद उस पत्रकार की नौकरी चली गई थी. कई ऐसे मौके थे जब स्‍मृति ईरानी के बात करने के तरीके पर सवाल उठा
.अमेठी में हार की ओर बढ़ रहीं स्मृति ईरानी, करीब 40 हजार वोटों से कांग्रेस  के केएल शर्मा से पीछे

 राहुल गांधी पर उनका तंज कम होने का नाम नहीं ले रहा था, यूपी में सातवें चरण के लोकसभा चुनाव से कुछ दिन पहले वाराणसी में एक चुनावी रैली के दौरान स्‍मृति ईरानी का माइक खराब हो जाता है, इस पर चुटकी लेते हुए वह कहती हैं, “माइक वाले का नाम राहुल तो नहीं” उनके इस कमेंट की काफी आलोचना हुई थी लोगों ने कहा था कि एक केंद्रीय मंत्री की तरफ से ऐसा बयान दिया जाना काफी निराशाजनक है. प्रियंका गांधी पर किया गया उनका तंज भी बहुत चर्चा में रहा, इसमें वह प्रियंका की मिमिक्री करती दिखी थीं. स्‍मृति ने कहा था कि राममंदिर प्राण प्रतिष्‍ठा का निमंत्रण अस्‍वीकार करने के बाद वे मंदिर जा सकते हैं क्‍योंकि उन्‍हें लगता है कि इससे उन्‍हें वोट मिलेगा, यानी वे भगवान को धोखा देने जाएंगे. राहुल पर  तंज कसते हुए केंद्रीय मंत्री मैडम ईरानी ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था,  “जो इंसान को रिझाने के‍ लिए भगवान से छल करते हैं वह हम सबका क्‍या खाक हो पाएगा, जो सच्‍चे मन से राम का नहीं वह हमारे किसी काम का नहीं.” अब चुनाव के नतीजों की घोषणा के बाद यह कहा जा सकता है कि राम अगर राहुल के काम नहीं आए, तो स्‍मृति ईरानी के काम भी नहीं आए.
Rahul Gandhi, India's Opposition Leader, During A Campaign Rally In Delhi, India, On Saturday, May 18, 2024. India's Election Is Past The Halfway Mark, With Campaigning Between The Main Political Parties Heating Up Just Like The Soaring Temperatures Across The Country. Photographer: Prakash Singh/Bloomberg Via Getty Images

वैसे लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब शाम को कार्यकर्ताओं को संबोधित करने की परंपरा निभाने के लिए भाजपा कार्यालय पहुंचे तो स्वाभाविक तौर पर उन का चेहरा कुछ उतरा हुआ था , आवाज में पहले जेसा दम नहीं था क्योंकि जो जीत भाजपा के हिस्से में आई है वह शर्मनाक है. पार्टी का 240 सीटों पर सिमट जाना उतना ही अप्रत्याशित था जितना यह कि इस कार्यक्रम में भाषण की शुरुआत ही जय जगन्नाथ से करना था. ओडिशा में मिली कामयाबी के बाबत जगन्नाथ के प्रति आभार और आस्था व्यक्त करने के साथसाथ उन्हें जय श्रीराम न बोलने का खूबसूरत बहाना भी मिल गया. कट्टर हिंदूवादी तो बौखलाएगे ही  क्योंकि ये नतीजे उन की दुकान, मंशा और मिशन पर 

Narendra Modi Oath Ceremony: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हैट्रिक, इस खास  रिकॉर्ड की बराबरी कर किया कमाल - India TV Hindi
पानी फेरते हुए आया हैं. अधिकतर लोग ऐसे भी है  जो यह राग अलापते नजर आ रहे  हैं कि अच्छा हुआ जो भाजपा और मोदी को बेलगाम होने का मौका नहीं मिला. क्योंकि अब काफी  हद तक फैसला अब नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू जैसे नेता के सहमती से होगा. अपाहिज भाजपा इन 2 बैसाखियों के सहारे ही चलेगी, क्योंकि वह कोई रिस्क नहीं उठाएगी. अब जो भी हो लेकिन यूपी के 2 लड़कों ने भाजपाई मंसूबों पर ग्रहण तो लगा ही दिया है. यह झटका जोरो का है और लगा भी जोर से है . जिस ने सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि आखिर केवल हिंदुत्व के नाम पर क्या मिल रहा है एक तबका और भी है जो महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से त्रस्त है लेकिन हिंदुत्व के चलते खामोश था. चुनाव परिणामों का यह रुख तय करेगा कि भविष्य की राजनीति का मिजाज कैसा होगा ....
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