.
राहुल गांधी पर उनका तंज कम होने का नाम नहीं ले रहा था, यूपी में सातवें चरण के लोकसभा चुनाव से कुछ दिन पहले वाराणसी में एक चुनावी रैली के दौरान स्मृति ईरानी का माइक खराब हो जाता है, इस पर चुटकी लेते हुए वह कहती हैं, “माइक वाले का नाम राहुल तो नहीं” उनके इस कमेंट की काफी आलोचना हुई थी लोगों ने कहा था कि एक केंद्रीय मंत्री की तरफ से ऐसा बयान दिया जाना काफी निराशाजनक है. प्रियंका गांधी पर किया गया उनका तंज भी बहुत चर्चा में रहा, इसमें वह प्रियंका की मिमिक्री करती दिखी थीं. स्मृति ने कहा था कि राममंदिर प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण अस्वीकार करने के बाद वे मंदिर जा सकते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उन्हें वोट मिलेगा, यानी वे भगवान को धोखा देने जाएंगे. राहुल पर तंज कसते हुए केंद्रीय मंत्री मैडम ईरानी ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था, “जो इंसान को रिझाने के लिए भगवान से छल करते हैं वह हम सबका क्या खाक हो पाएगा, जो सच्चे मन से राम का नहीं वह हमारे किसी काम का नहीं.” अब चुनाव के नतीजों की घोषणा के बाद यह कहा जा सकता है कि राम अगर राहुल के काम नहीं आए, तो स्मृति ईरानी के काम भी नहीं आए.
वैसे लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब शाम को कार्यकर्ताओं को संबोधित करने की परंपरा निभाने के लिए भाजपा कार्यालय पहुंचे तो स्वाभाविक तौर पर उन का चेहरा कुछ उतरा हुआ था , आवाज में पहले जेसा दम नहीं था क्योंकि जो जीत भाजपा के हिस्से में आई है वह शर्मनाक है. पार्टी का 240 सीटों पर सिमट जाना उतना ही अप्रत्याशित था जितना यह कि इस कार्यक्रम में भाषण की शुरुआत ही जय जगन्नाथ से करना था. ओडिशा में मिली कामयाबी के बाबत जगन्नाथ के प्रति आभार और आस्था व्यक्त करने के साथसाथ उन्हें जय श्रीराम न बोलने का खूबसूरत बहाना भी मिल गया. कट्टर हिंदूवादी तो बौखलाएगे ही क्योंकि ये नतीजे उन की दुकान, मंशा और मिशन पर
पानी फेरते हुए आया हैं. अधिकतर लोग ऐसे भी है जो यह राग अलापते नजर आ रहे हैं कि अच्छा हुआ जो भाजपा और मोदी को बेलगाम होने का मौका नहीं मिला. क्योंकि अब काफी हद तक फैसला अब नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू जैसे नेता के सहमती से होगा. अपाहिज भाजपा इन 2 बैसाखियों के सहारे ही चलेगी, क्योंकि वह कोई रिस्क नहीं उठाएगी. अब जो भी हो लेकिन यूपी के 2 लड़कों ने भाजपाई मंसूबों पर ग्रहण तो लगा ही दिया है. यह झटका जोरो का है और लगा भी जोर से है . जिस ने सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि आखिर केवल हिंदुत्व के नाम पर क्या मिल रहा है एक तबका और भी है जो महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से त्रस्त है लेकिन हिंदुत्व के चलते खामोश था. चुनाव परिणामों का यह रुख तय करेगा कि भविष्य की राजनीति का मिजाज कैसा होगा ....
4 .