RSS हटी BJP की सीट घटी


  SCG NEWS.नरेंद्र पाण्डेय :   10 जून को संघ प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में आरएसएस के कार्यकर्ता विकास वर्ग के समापन पर कहा कि जो अपने कर्तव्य का पालन करते हुए मर्यादा की सीमाओं का पालन करता है अपने काम पर गर्व करता है अहंकार से रहित होता है ऐसे व्यक्ति ही वास्तव में सेवक कहलने का हकदार है काम करें लेकिन मैंने किया यह अहंकार न पाले. यह बात उन्होंने पॉलीटिकल पार्टी के अब हो रहे रवैये पर बोल रहे थे, अहंकार वाली बात किसके लिए कही या उनका इशारा किसकी ओर था यह साफ तो नहीं है लेकिन लोग अपने-अपने हिसाब से कयास जरूर लगा रहे हैं. लोकसभा चुनाव में चौथे राउंड की वोटिंग के बाद भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा का यह कहना की शुरुआत में जब हम कम सक्षम थे तब हमें rss की जरूरत पड़ती थी आप हम सक्षम है आज बीजेपी खुद अपने आप को चलती है
इन सब से एक बात तो साफ हो रही है कि आरएसएस और बीजेपी के रिश्तों में खींचतान चल रही है.  वैसे यह खींचतान  बीते तीन-चार साल से चल रही है आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी के ऊपर नजर रखने वाले और उस पर एनालिसिस करने वाले लोगों का मानना हैं कि भाजपा ने चुनाव के दौरान rss की सलाह को लगातार नजरअंदाज करती रही है दावों में यह भी कहा गया है कि rss वर्कर से कहा गया था कि वें प्रचार से दूर रहे क्योंकि उनके रहते माइनॉरिटी के वोट मिलना मुश्किल होता है.
तो प्रश्न यह उठता है, क्या आरएसएस बीजेपी के साथ नहीं थी. Rss जुड़े मेरे मित्र कहते हैं कि rss किसी के साथ नहीं होती वह सिर्फ एडोलॉजी के साथ होती है.बीजेपी चुनाव में rss की आईडियोलॉजी के साथ नहीं थी.बीजेपी पीछे हटी rss नहीं हटी थी.
इससे एक बात तो साफ होती है जिसकी चर्चा लगातार बनी हुई है आरएसएस के कार्यकर्ता चुनाव में बीजेपी के लिए माहौल बनाने और विपक्ष का नेरीटिव तोड़ने में एक्टिव नहीं रहे.

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सूत्र बताते हैं कि भाजपा ने राम मंदिर बनने के बाद से rss की बात सुनना बंद कर दिया था उसने rss की सलाह पर ध्यान देना भी जरूरी नहीं समझा.कहा जाता है कि भाजपा ने राम मंदिर निर्माण समिति का अध्यक्ष पीएम मोदी के करीबी निर्पेंद्र मिश्र को बनाया था. मिश्रा वही है जिन्होंने 2014- 2019 में पीएमओ के सबसे खास अधिकारी हुआ करते थे और राम मंदिर आंदोलन के वक्त वह यूपी में प्रमुख सचिव के पद पर थे जिन्होंने कार्य सेवकों पर गोलियां चलवाई थी नृपेंद्र मिश्रा का राम मंदिर निर्माण समिति का अध्यक्ष बनाया जाना rss के कई पदाधिकारी को पसंद नहीं आया था. यह बात आरएसएस ने बीजेपी के नेताओं से भी कही थी लेकिन बीजेपी ने अपना फैसला नहीं बदला और rss एवं भाजपा के बीच की खाई बनने की सबसे ठोस वजह बन गई

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दूसरी वजह थी रामलाल के प्राण प्रतिष्ठा को लेकर. आरएसएस चाहता था कि रामलला के प्राण प्रतिष्ठा को राजनीति से बचना चाहिए यह हिंदुत्व का मुद्दा है लोगों की आस्था का सवाल है अगर जनता को लगा कि राम मंदिर पर राजनीति हो रही है तो बीजेपी से दूर हो जाएगी rss की. इस सलाह को भी बीजेपी ने नहीं माना और इसका असर यह हुआ कि बीजेपी अयोध्या की सीट तक गवा दी.
मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के मामले में भी आरएसएस चाहता था कि सभी शंकराचार्य और धर्मगुरु इस आयोजन में शामिल किया उन्हें पर्याप्त तवज्जो दी जाना चाहिए पर भाजपा हरबार की तरह यह बात मानना भी जरूरी नहीं समझा. जो नाराज थे उन्हें नाराज रहने दिया उन्हें मनाना भी उचित नहीं समझा.बीजेपी ने अपने गेस्ट बुलाए जो ग्लैमर और बिजनेस की दुनिया में से थे. आरएसएस चाहता था कि संयोजन में ग्लैमर का तड़का ना लगे जबकि भाजपा ने कई बॉलीवुड स्टार्स को ऑफिशियल निमंत्रण दिया था. आरएसएस चाहता था कि रामलाल की प्राण प्रतिष्ठा को पवित्र मौका मनाया जाए लेकिन यह मौका पवित्रता की जगह ग्लैमरस ज्यादा हो गया था. आरएसएस आयोजन में उन लोगों को बुलाना चाहता था जिन्होंने राम मंदिर से जुड़ा कोई संकल्प लिया हो कोई शपथ ली हो की मंदिर बनने तक चप्पल और पगड़ी नहीं पहनेने  जैसा संकल्प. अयोध्या के आसपास कुछ राजपूत समुदाय है जिन्होंने मंदिर बनने तक पगड़ी नहीं पहनने का संकल्प लिया था यह आरएसएस की लिस्ट में शामिल थीं जिन्हें भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने तरजीह नहीं दी
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प्राण प्रतिष्ठा के मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी खुद पूजा करने का जो फैसला लिया था,उससे भी आरएसएस सहमत नहीं था. अरएसस चाहता था कि यह जिम्मेदारी किसी बड़े धर्मगुरु संत या फिर लालकृष्ण आडवाणी को दी जाए जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन की अगुवाई की थी पर यह भी नहीं हुआ और तो और आंदोलन को आगे बढ़ाने वाले आडवाणी और मुरली मनोहर जैसी नेताओं को किनारे करने की कोशिश भी हुई. आरएसएस ईडी और सीबीआई के इस्तेमाल का चुनाव में उपयोग के बारे में भी भारतीय जनता पार्टी को चेतावनी देता रहा है. आरएसएस मानता था कि इससे विपक्ष की विक्टिम जैसी छवि बन रही है जिसे विपक्ष को फायदा मिल रहा है और ग्राउंड पर हमारे कार्यकर्ता इस बात का जवाब नहीं दे पा रहे हैं वह डिफेंसीव हो रहे हैं पर भाजपा ने इसे भी इग्नोर किया. बीजेपी जिस तरह दूसरे पार्टी के नेताओं को अपने यहां शामिल कर रही थी जिन पर करप्शन से आरोप लगे थे उसको लेकर के भी पार्टी को चेतावनी दी थी आरएसएस ने चेताया था कि जमीनी स्तर पर इसके सरकार की छवि और भाजपा की छवि बिगाड़ रही है लेकिन यह सब भी भाजपा ने ठंडे बस्ते में डाल दी थी.BJP Foundation Day: BJP के स्थापना दिवस पर पार्टी दिखाएगी ताकत, MP में  रचेगी ये इतिहास


यूपी से जुड़े कुछ मेरे rss के मित्र कहते हैं कि इस चुनाव में जो उत्तर प्रदेश में बीजेपी को झटका लगा है उसे  आरएसएस ने टिकट के बंटवारे के वक्त ही भाँप लिया था . आरएसएस का मानना था कि कुछ सांसदों को छोड़कर नए लोग को टिकट देना चाहिए जैसा दिल्ली में किया गया था लेकिन यहां भी आरएसएस की नहीं चली . लोग कहते हैं कि मोदी सरकार के नारे से भी rss  नाराज था यह यह नारा  rss के आईडियोलॉजी में फिट नहीं बैठता. क्योंकि आरएसएस हमेशा संगठन या समूह को तरजीह देता है ना कि किसी व्यक्ति विशेष को और मोदी सरकार के नारे से एक व्यक्ति सर्वोपरि दिखाई दे रहा था. अब इस पर चर्चा हो रही है कि क्या चुनाव में मोदी को सर्वोपरि मानना एक बड़ी गलती थी
.Narendra Modi, India's prime minister, center, during a campaign rally in Agra, Uttar Pradesh, India, on Thursday, April 25, 2024. Modi doubled down on his attacks against the main opposition party by using language critics say sows division between the country's Hindu majority and Muslim minority. Photographer: Prakash Singh/Bloomberg via Getty Images
उड़ीसा के बारे पर वह कहते हैं कि यहां की जीत पर बीजेपी को कम नहीं बांधना चाहिए उड़ीसा के लोग नवीन पटनायक की बीमारी और ब्यूरो क्रेसी  के हाथों में जा रही सत्ता से नाराज थे उनके सामने कांग्रेस का विकल्प नहीं था सामने सिर्फ बीजेपी थी अगर कांग्रेस जोर लगती तो नतीजा ऐसा बिल्कुल नहीं होता. कुल मिलाकर कहें तो अब गेंद बीजेपी के पाले में है यदि बीजेपी इन चीजों पर रिव्यू नहीं करती है तो तो 2029 का चुनाव बीजेपी के हाथ से निकल जाएगा. भाजपा को अब समझना होगा कि गठबंधन की सरकार चलाने के लिए लचीला होना होगा. यह मोदी की सरकार नहीं गठबंधन की सरकार है. पूर्व में भी भाजपा की सरकार थी किसी और की सरकार होने की गलतफहमी ना पाला जाए 

.गठबंधन सरकार की चुनौतियां अपने एजेंडे को आगे कैसे बढ़ाएगी बीजेपी -  Challenges of coalition government how will BJP take its agenda forward

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