गर्मी बढती रही ,राजनीति का परा चढ़ता रहा, विपक्षियों के उम्मीदों पर पानी फिरता रहा


नरेन्द्र पाण्डेय : Narendra Pandey,

    1 जून को सातवें चरण के वोटिंग के पश्चात विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में 18 वीं लिक्सभा के लिए चुनाव सम्पन्न हो गया शाम से ही कई सर्वे एजेंसिया टीवी चैनेलो पर अपने एनालिसिस के साथ प्रेजेंटेशन देने लगे .सभी एग्जिट पोल के आंकड़ों को देखने के बाद लगता है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली एनडी गठबंधन बुरी तरह से पिछड़ रही है. पूरे देश में भाजपा की बयार चली है और मोदी के आगे सभी मुद्दे फेल रहे . अगर इन सर्वे के अनुमान 4 जून को परिणाम में बदलते हैं तो यह कांग्रेस के लिए सबसे संकट भरा समय होगा. वैसे तो कांग्रेस काफी समय से संकटों  से गुजरती रही है. लेकिन इस समय जो संकट है उसकी सबसे बड़ी समस्या राहुल गांधी की लीडरशिप को लेकर है जिसे कांग्रेस के नेता मानते तो है लेकिन स्वीकार नहीं कर पाते. एनडी ब्लॉक भी इसलिए बनाया गया था. क्योंकि कांग्रेस को पता है कि उसे यदि सत्ता में आना है तो गठबंधन करना ही पड़ेगा . कांग्रेस अच्छी तरह से जानती है कि यदि वह बीजेपी से डायरेक्ट मुकाबले टिक नहीं सकती, जहाँ जहाँ डायरेक्ट चुनाव लड़ती है उसकी दुर्गति हो जाती है,.
हमारी इच्छा है कि नरेंद्र मोदी फिर से मुख्यमंत्री बनें', बिहार के दनियावां  में फिसली नीतीश की जुबान - CM Nitish Kumar Tongue Slipped Daniyawan Bihar  We Wish Narendra Modi ... 

क्षेत्रीय दलों को भी लगता है कि विपक्षी खेमे में  कांग्रेस ही एक मात्र राष्ट्रीय दल है. कांग्रेस पार्टी ने जब यह गठबंधन शुरू किया था तो नीतीश कुमार इसके राष्ट्रीय संयोजक बने थे यह उनका इनीशिएटिव था , नितीश बाबू को लगता था की पूरी विपक्षी खेमें में सबसे योग्य आदमी वही है जिन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जा सकता है. लेकिन कांग्रेस पार्टी यह जानती थी कि यदि इस बात के लिए यह गठबंधन बंधन बना दिया तो वह कांग्रेस के लिए किसी भी प्रकार का फायदेमंद नहीं होगा. कांग्रेस राहुल गांधी के अलावा विपक्ष के किसी भी लीडरशिप को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होती. जब नितीश बाबू को यहा समझ में आ गया तो उन्होंने गठबंधन से अपने आप को किनारा कर लिया. इसी तरह गठबंधन के जो बाकी दल है वह भी राहुल के नेतृत्व को स्वीकार करना नहीं चाहते लेकिन उनकी भी कुछ मजबूरी है जिससे वह इस बात को जोर शोर से नहीं बोल रहे थे, केवल ममता बनर्जी को छोड़कर.  इसलिए तो टीएमसी गठबंधन का हिस्सा बनकर के ,भी हिस्सा नहीं रही. शायद इसीलिए तो उसने पश्चिम बंगाल में कांग्रेस को दो सीटें देना भी उचित नहीं समझा और इस तरह राहुल गांधी को कांग्रेसियों द्वारा पीएम बनाने का सपना एक बार पुनः टूटता हुआ दिखाई दे रहा है. अब राहुल गांधी की स्थिति क्या होगी ? शायद इसीलिए मल्लिकार्जुन खड़गे जो कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष है ने एनडी ब्लॉक की एक बैठक बुलाई हालांकि इसे एक अनौपचारिक बैठक कहा गया है. शायद ये कांग्रेसी और वर्तमान कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे विपक्ष के शेष नेताओं को नादान और ना समझ समझते हैं  तभी तो चुनाव के पहले और पूरे चुनाव तक यह लोग कहते रहे की परिणाम आने के बाद देखेंगे कि प्रधानमंत्री पद का दावेदार कौन होगा लेकिन कल बैठक शुरू होने के पूर्व ही मल्लिकार्जुन ने जब यह कहा कि प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवार के लिए उनकी पहली पसंद राहुल गांधी है.तो राजनीती गालियारे मे कई तरह की चर्चाएं होने लगी. कांग्रेस अच्छी तरह से जानती है कि यदि आज सहमति नहीं बनाई गई तो 4 जून के बाद इस बात पर चर्चा होना मुश्किल है . क्योंकि परिणाम आते ही यह गठबंधन एक-एक करके बिखरने लगेगा , सारे साथी एक-एक करके इस घरौंदें से उड़ने लगेंगे. आपको याद ही होगा कि चुनाव के समय दिल्ली के  मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक निजी चैनल के इंटरव्यू में कहा था कि हमारा गठबंधन तो मोदी को हराने के लिए बना है , चुनाव तक के लिए ही है, 4 जून के बाद देखा जाएगा कि हम इस गठबंधन का हिस्सा रहते हैं या नहीं. हमने कांग्रेस सें कोई शादी तो की नहीं है.  दरअसल कांग्रेस के कुछ चाटुकार नेताओं को यह डर है कि 4 जून को परिणाम आने के बाद कहीं राहुल गांधी के नेतृत्व के विरोध में पार्टी के अंदर से ही स्वर तेज ना हो जाए, तो यदि रिजल्ट आने के पहले ही पूरा विपक्षी खेमा यानी कि एनडी गठबंधन  राहुल गांधी का नेतृत्व स्वीकार कर लेते हैं तो इस समस्या से थोड़ी सी राहत मिल सकती है. अब गौर करने की बात यह है कि जितने भी क्षेत्रीय दल एनडी ब्लॉक का हिस्सा रहे हैं उनकी प्राथमिकता अपनी क्षेत्रीय राजनीति की रही है राष्ट्रीय राजनीति की नहीं.  चुनाव खत्म होते ही राष्ट्रीय मुद्दे  उनके लिए गौण हो जाएंगे. यदि क्षेत्रीय दलों के परिणाम उनके अनुरूप नहीं आते हैं तो उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी अपने अपने राज्यों में अपने-अपने क्षेत्र में अपनी पार्टी की स्थिति को मजबूत करना बनिसपत राहुल गांधी और कांग्रेस के बारे मे सोचने के . अब देखना होगा की अपनी पहली कोशिशो मे फेल हुई कांग्रेस इस योजना मे कितनी सफल होती है.
171 करोड़ का अरविंद केजरीवाल हाउस - अंदर की तस्वीरें, पता, घर की लागत और  बहुत कुछ

बात राजनेता के फेलियर की हो तो अरविंद केजरीवाल को कैसे छोड़ सकते हैं. अरविंद केजरीवाल बड़े चालाक आदमी है और जनता को ये बहुत नादान समझते हैं, उन्हें लगता है की ये जनता तो कुछ समझती ही नहीं है, ये बड़ी भोली है.तभी तो हर बार कोई ना कोई इमोशनल विक्टिम कार्ड फेंक देते हैं जनता के सामने . अब देखिए न , जब वे तिहाड़ जेल में थे तो अपने स्वास्थ्य को लेकर के कई तरह के आरोप लगाते थे कि उनका स्वास्थ्य बिगड़ रहा है उनका डायबिटीज बढ़ रहा है उन्हें बराबर खाना नहीं मिल रहा है लेकिन गौर कीजिए जैसे ही जेल से बाहर आते हैं चुनाव प्रचार करते हैं उनका स्वास्थ्य बिल्कुल ठीक हो जाता है और किसी भी मंच पर किसी भी भाषण पर यह नहीं कहा कि अब उनका स्वास्थ्य खराब हो रहा है उनका वजन कम हो रहा है लेकिन कल जैसे ही चुनाव की प्रक्रिया संपन्न हो गई  उनके पुनः तिहाड़ वापस जाने का समय आ गया तो उन्होंने इमोशनल कार्ड खेलते हुए कहा कि उनकी तिहाड़ जेल में रहते हुए लगभग 6 किलो वजन कम हो गया था. अभी उनका स्वास्थ्य बढ़िया नहीं है. तिहाड़ जेल के अधिकारियों को सामने आकर कहना पडा कि उनका इंसुलिन जेल आने के पहले ही उनके निजी डॉक्टर ने बंद करवा दिया था और तिहाड़ जेल में रहते हुए उनका वजन किसी भी प्रकार से काम नहीं हुआ है जेल अथॉरिटी ने क्लीयर किया कि अरविंद केजरीवाल हैदराबाद के किसी डॉक्टर की डायबिटीज रिवर्सल प्रोग्राम को फॉलो कर रहे थे जिससे उनका वजन कम हो रहा था. पूरे चुनाव में अरविंद केजरीवाल जनता को यह बताते रहे कि उन्हें तिहाड़ जेल में बहुत ज्यादा यातनाएं दी जा रही थी. क्या दिल्ली की जनता को यह नहीं पता था कि तिहाड़ जेल दिल्ली प्रशासन के अंदर आता है और दिल्ली राज्य का प्रशासन अरविंद केजरीवाल के हाथ में है.
New Delhi: स्वाति मालीवाल के साथ बदसलूकी मामले में केजरीवाल का बड़ा ऐक्शन,  सख्त कार्यवाई के दिए आदेश
                           एक प्रकार से देखा जाए तो केजरीवाल अपने ही प्रशासन पर दोष मढ़ रहे है. उनकी यह कोशिश तो जनता से सहानुभूति बटोरने की थी हालांकि इसमें वह कुछ कामयाब हो भी रहे थे कि तभी एक कांड हो गया. सीएम निवास के अंदर में ही उन्ही की पार्टी की एक महिला जो राज्यसभा सांसद है, दिल्ली की पूर्व महिला आयोग की अध्यक्ष रही है उनकी पिटाई हो जाती है. आरोप लगा अरविंद के सबसे करीबी और निज सचिव विभव कुमार के ऊपर जो अब हिरासत में है. अरविंद के लिए अब यह सबसे बड़ा संकट है क्योंकि उन्हें डर लग रहा होगा कि यदि विभव कुमार ने मुँह खोला तो उनका क्या होगा? इसलिए अरविंद केजरीवाल ने अब एक नया विक्टिम कार्ड खेला और अपने बुजुर्ग माता पिता को सामने लाकर मिडिया मे ये बात फैलाने की कोशिस की कि पुलिस उनके घर भरी दुपहरी में उनके माता-पिता से पूछताछ करने आ रही है. दिल्ली पुलिस प्रशासन को आगे आकर कहना पड़ा कि बताइए हमने आपको कब नोटिस भेजा है. अब जब उनका यह भी दाँव भी नहीं चला तो उन्होंने एक इमोशनल कार्ड और फेंक दिया. उन्होने दिल्ली की जनता से कहा कि मुझे तो जेल जाना ही पड़ेगा लेकिन दिल्ली वासियों मेरी माताजी कि तबियत ज्यादा खराब है. मैं जेल चला जाऊंगा तो उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है इसलिए मैं अपनी माता को आपके हवाले करता हूं. अरविंद को जेल जाने से पहले यह बातें बोलने की क्या जरूरत थी, महज जनता से एक सहानुभूति बटोरने के अलावा. अरविंद केजरीवाल यह जानते हैं कि शराब घोटाला केस और स्वती मालीवाल कांड के पश्चात उनकी छवि दिल्ली वासियों में काफी बदल गई है इसलिए अब दिल्ली वालों के प्रति वे अपना परसेंप्शन बदलना चाहते हैं लेकिन इसमें भी वह फेल होते ही नजर आ रहे हैं. खैर देखते हैं कौन होगा पास, कितने जाएंगे छिटक हम और आप करते इंतजार 4 जून के परिणाम का.

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