बेटी को बेटी ही रहने दें



महिलाएं कभी एक बेटी के रूप में, कभी एक पत्नी के रूप में तो कभी एक मां के रूप में अपना पूरा जीवन समर्पित कर देती हैं। फिर एक दिन उन्हें यह सुनने को मिलता है कि वह घर का बेटा है! हां, बिलकुल बेटा जैसा इसने पूरे घर का भार अपने कंधों पर उठा रखा है, मानो एक लड़की होने के नाते वह ऐसा करने की हकदार ही नहीं।
ये पुरुष प्रधान समाज हमेशा से इसी मानसिकता से ग्रस्त रहा कि घर चलाने के लिए एक बेटे की जरूरत होती है। इसमें वो महिलाएं भी शामिल हैं जिन्होंने हमेशा इस दुनिया को पुरुषों के नजरिए से देखा। यहां मैं अपने आसपास के अनुभव के आधार पर कुछ जरूरी बातें शेयर की हैं।
बेटियों को घर का बेटा कहकर आप उनके मन में यह बात बिठा रहे हैं कि परिवार चलाने के लिए बेटा ही चाहिए। इस तरह वे भी उन्हीं महिलाओं में शामिल होंगी जो पुरुष प्रधान समाज को आगे बढ़ाने का काम कर रही हैं। आपको नहीं लगता कि एक ही सोच को आगे ले जाने के लिए जाल बुना जा रहा है?
क्या नहीं लगता कि  उन्हें बेटे जैसा बनने के लिए प्रेरित करना मतलब प्रकृति से मिली पहचान के साथ छेड़छाड़ करना है। कई बार लड़कियां बेटों जैसा बनने की चाह में अपनी मूल स्थिति को ही भूल जाती हैं, यहीं से मानसिक हलचल की शुरुआत होती है।
अगर बचपन से ही किसी लड़की को बार-बार यही कहा जाए कि तुम्हें एक बेटे की तरह घर संभालना है तो हो सकता है उसमें लड़की होने की वजह से हीन भावना आए। इस तरह के इमोशंस कभी सामने से देखने को नहीं मिलते उन्हें बारीकी से पहचानना पड़ता है।
मैने ऐसे कई उदाहरण देखें हैं जिनमें लड़कियां पुरुषों के प्रति नकारात्मक भाव पैदा कर उनसे होड़ करने में लग जाती हैं। यह न केवल उनके व्यक्तिगत विकास में एक बाधा बनता है बल्कि समाज को लेकर भी एक नकारात्मक दृष्टिकोण पैदा करने के लिए जिम्मेदार है। दरअसल
बेटा कहकर हम अप्रत्यक्ष तरीके से पुरुषों को बेहतर और ऊपर दिखाने की कोशिश करते हैं। यह शक्ति प्रदर्शन महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित तो करता है पर जेंडर के प्रति भेदभाव को भी बढ़ावा देता है। इसलिए बेटी को बेटी ही रहने दे बेटा बनाने की कोशिश न करें

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