बीजेपी का '400 पार' का नारा सच के कितने करीब


Narendra Pandey :  लोकसभा चुनावों के लिए छै चरणों का मतदान संपन्न हो चुका है. इस चुनावी कवायद में बहस के तमाम मुद्दों के बीच सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा 400 पार का दावा ही मुख्य रूप से चर्चा में रहा। ऐसा लगता है कि भाजपा ने अपने चार सौ का ऐसा ताना बाना बुना कि विपक्षी खेमा भी इसी में फंसकर रह गया। विपक्षी खेमा अपनी सीटों से ज्यादा हर चरण के साथ भाजपा की संभावित सीटों की संख्या घटाने में लगा रहा । प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस भी अपनी सीटों से ज्यादा भाजपा को कितनी सीटें आएंगी, इसे लेकर उत्सुकता बनाए हुए दिखाई पडा। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि कांग्रेस 2019 के अपने प्रदर्शन से क्या बेहतर कर पाती है और यदि कर पाती है तो कितना बेहतर। ऐसा इसलिए, क्योंकि देश की लगभग 200 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला होता रहा है। पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा ने इनमें से 90 से 95 प्रतिशत सीटों पर जीत दर्ज की है। पिछले दो चुनावों की बात करें तो 2014 में कांग्रेस को 44 सीटें मिली थीं तो 2019 में उसे 52 सीटें हासिल हुईं। पिछले चुनाव में उसकी कुछ सीटें भले ही बढ़ गई हों, लेकिन उसके लिए चिंतित करने वाला पहलू यही था कि दूसरे स्थान पर रहने वाले कांग्रेस प्रत्याशियों की संख्या 2019 में काफी घट गई थी। यानी कांग्रेस कई सीटों पर तीसरे या उससे भी निचले पायदान पर फिसल गई। केरल के अलावा वह किसी भी राज्य में दहाई का आंकड़ा नहीं छू पाई। ऐसे में यह देखना होगा कि इस स्थिति में कांग्रेस कहां तक सुधार लाने में सक्षम हो सकेगी।
बात करें भाजपा की तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का अबकी बार 400 पार के नारे में कितनी हकीकत है कितना फसाना. आइये समझने का प्रयास करते है. इस नारे को मोदी की चुनावी रणनीति की तरह समझा जा सकता है. गौर करने वाली बात यह है कि 1952 से 2019 तक देश मे महज एक बार 1984 मे ही किसी पार्टी ने 400 पार किया था वो थी कांग्रेस . तब उसे 415 सीटें मिली थी. इसके पूर्व इस आंकड़े को न तो जवारलाल नेहरू ने न ही इंदिरा गाँधी कभी छू पाई थी. अब यदि 1984 और 2024 के चुनावों कि परिस्थितियों कि तुलना कि जाए तो कांग्रेस पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश को छोड़ दे तो शेष राज्यों मे काफी मजबूत थी. उस समय उसे बंगाल मे 16 सीटें मिली थी और आंध्र मे तेलगुदेशम को विजय श्री. जबकि भाजपा को 2019मे कर्णनाटक को छोड़ दे तो दक्षिण मे कहीं भी सफलता नही मिली थी, बल्कि पश्चिम और उत्तर पूर्वी क्षेत्रो मे बम्पर जीत मिली.कर्णनाटक मे उस समय 28 मे से 25 सांसद जीते थे तो प. बंगाल मे 41 मे से 18 सीटें मिली थी. 1984 मे कांग्रेस को केरल और तमिलनाडु मे भी सफलता मिली थी जबकि भाजपा का यहाँ खाता भी नाही खुला था.
84 मे कांग्रेस को जो 415 सीटें मिली थी उसे राजीव गाँधी को उनकी माँ तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी कि मौत की सहानभूति का परिणाम माना जाता है.2024 की बात करें तो भाजपा नरेन्द्र मोदी कें नेतृत्व मे पिछले 10 वर्षो से सत्ता पर काबिज है जिससे एंटी इनकानबेंशी का उपजना स्वाभाविक है. ऐसे मे 400 पार का नारा देकर एक नेरीटिव तय करने की कोशिश की गई जिससे जनता को विश्वास दिलाया जा सके कि भाजपा का कार्यकाल 2014 के मुकाबल 2019 का बेहतर रहा है और मोदी पहले से भी अधिक मज़बूत हो गये है. इस नारे से भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को भी संदेश देने मे कामयाब रही कि 400 पार उनकी प्रतिष्ठा का सवाल है. और मोदी सरकार के खिलाफ कोई एंटी इंक्नेबेंशी नही हैं.
वहीं पूरा विपक्ष अपनी पूरी ताकत यह बताने मे लगाता रहा कि भाजपा 400 पार नही कर सकती बनीस्पत अपनी उपलब्धयाँ और उसकी खुद की कितने सीटें आएँगी यह बतलाने मे. विपक्ष के सारे एजेंडा गौण हो गये और मुद्दा बना कि 400 पार होगा या नहीं. Indi गठबंधन कोई भी राष्ट्रीय मुद्दा या एजेंडा गढ़ने मे नाकाम रहा. उनका केंद्र तो बस मोदी को रोकना रहा.विपक्ष और कांग्रेस के एक प्रमुख नेता राहुल गाँधी कहते है कि मैं गरंटी देता हूँ कि नरेन्द्र मोदी प्रधान मंत्री नही बन रहें. पर वे यह दावा नही कर रहें कि उनका गठबंधन 272 का जादुई आकड़ा छू पायेगा या नही. चलो मान ले कि यदि indi गठबंधन की 272 सीटे आ भी जाए तो प्रधान मंत्री पद पर कौन होंगे, यह भी जनता को विश्वास नही दिला पा रहें. जिससे कांग्रेस कमजोर होती जा रहीं है.
क्षेत्रीय दलों के बयानो को देखे तो स्पष्ट है को उनके नेता राहुल गाँधी को अपना नेता मानने को तैयार ही नही है. अब जब गठबंधन के नेताओ की अपनी स्वीकार्यायता ही नही हैं तो जनता के बीच कैसे हो सकती है?
भाजपा को 400 पार को साकार करने के लिए अपने सहयोगियों से बेहतर परिणाम कि जरूरत होगी. जिसमे महाराष्ट्र और बिहार प्रमुख राज्य होंगे. 2019 मे महाराष्ट्र मे nda को 48 मे से 41 सीटें मिली थी और बिहार मे 40 मे से 39 सीटें. माना जा रहा है कि बिहार मे जेडीयू कमजोर हुई है तो महाराष्ट्र मे शिवसेना और एनसीपी के टूटने का लाभ किसे मिलेगा अंदाजा लागाना मुश्किल ही रहा है. लेकिन शरद पवार का ताजा बयान कि 4 जून के बाद क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस मे मर्ज होने पर विचार करना होगा संकेत दे रहा है कि भविष्य मे शायद क्षेत्रीय दलों का भविष्य में कोई औचित्य नही रहेगा. यह बयान सोचने को मजबूर करता है कि क्या महाराष्ट्र में महागड़ी पिछड़ रहा है.
जिस तरह से पिछले 3-4 महीनों में चर्चा 370 और 400 पार पर हो रही है. इसे बीजेपी की रणनीति मानें या विपक्ष की कमजोरी लेकिन बीजेपी ने अपना लक्ष्य पूरी तरह से 272 से 370 पर शिफ्ट कर दिया है. इससे बीजेपी को फायदा ही हुआ है. क्योंकि अब कोई यह नहीं कह रहा है कि मोदी हारेंगे, सब कह रहे हैं कि भाजपा को 370 सीटें मिलेंगी या नहीं.'' 1984 मे भी माहौल यही था. यह तय था कि कौन जीतेगा . सवाल तो था कि कितनी सीटें आएगी , अब भी वही अंदाजा लगाया जा रहा है कि 2024 मे भी एक silent wave चल रही है.

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