केजरीवाल का इस्तीफा निशाना कहीं और


हाल के दिनों में अन्य सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की तुलना में यदि किसी मुख्यमंत्री ने सबसे अधिक ध्यान आकर्षित किया है वो है अरविन्द केजरिवाल । और यह सब संभव हो पाया केंद्र और उसके भारी हथियारों, जैसे ईडी और सीबीआई की बदौलत। दोनों एजेंसियों ने पिछले छह महीनों में केजरीवाल को एक अदालत से दूसरी अदालत में घुमाया, हालांकि कुछ प्रतिबंधों के साथ, जैसे कि कार्यालय में उपस्थित न होना और उपराज्यपाल द्वारा भेजे या कहे जाने तक फाइलों पर हस्ताक्षर न करना आदि के साथ उन्हे शीर्ष अदालत से से जमानत मिल गई माना जा रहा है कि  गिरफ्तारी से पहले की तुलना में दिल्ली पर उनका नियंत्रण बहुत कम हो गया।
अब केजरीवाल ने जब पद छोड़ने और केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली की बागडोर किसी अन्य आम आदमी पार्टी के सहयोगी को सौंपने का कदम स्पष्ट रूप से दिल्ली पर राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की संभावना को विफल करने का प्रयास है। वैसे भी उनका कार्यकाल समाप्त होने वाला है और चुनाव आयोग चार महीने से भी कम समय में 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा के चुनावों की घोषणा कर देगा । एसे मे केजरिवाल का इस्तीफा देना कोई बड़ी बात नहीं है । लेकिन ऐसा करके उन्होंने राजनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण बनने की कोशिश की है, जो कि 5 अक्टूबर को होने वाले हरियाणा विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी के लिए नहीं हो सकता था।
अगर राजनीति परिस्थितियों का खेल है, तो केजरीवाल इसमें माहिर खिलाड़ी हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल के अंत में इस्तीफा देकर, वह खुद को भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ मुख्य ताकत के रूप में स्थापित करेंगे। यह अब तक कांग्रेस के लिए सुरक्षित रहा है । 



हरियाणा में अब बहुकोणीय मुकाबला होने वाला है, जहां कांग्रेस और आप के अलावा दो और क्षेत्रीय गठबंधन भाजपा को हराने की कोशिश करेंगे। इससे वोटों में विभाजन होने की संभावना है और कांग्रेस की तुलना में भाजपा को अधिक लाभ होगा । यह एक रहस्य है कि कैसे इसने 2015 और 2020 में क्रमशः दिल्ली विधानसभा की 67 और 62 सीटें जीतीं, लेकिन 2014, 2019 और 2024 में एक भी लोकसभा सीट नहीं जीत सकी। वास्तव में, केजरीवाल के आलोचकों को अक्सर दिल्ली में सत्ता साझा करने के लिए AAP और भाजपा के बीच एक मौन समझौते की गंध आती है। केजरिवाल का कहना है कि जब तक दिल्ली की जनता फरवरी में होने वाले चुनाव में उन्हें दोबारा सत्ता में नहीं लाती, तब तक वह मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं संभालेंगे।अब सवाल यह है कि विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले दिल्ली में चल रहा मौजूदा ड्रामा क्या उस तरह के नतीजे लाएगा जिसकी केजरीवाल उम्मीद कर रहे हैं।

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