SCG NEWS...नरेंद्र पाण्डेय ( संपादकीय ):- भारत की सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली वेब सीरीज मिर्जापुर का तीसरा सीजन रिलीज हो चुका है. इस सीरीज के पिछले दो सीजन को खूब पसंद किया गया था. मिर्जापुर 2 शानदार और कई सवालों के साथ खत्म हुआ था. फिल्म में आतंक, पॉवर और गद्दी हथियाने की यह लड़ाई और भी भीषण हो चुकी है। शादी के कत्लेआम से बचकर आने के बाद मुन्ना अब खुद को अमर समझ रहा है। वहीं, गुड्डू और गोलू बदले की आग में जल रहे हैं। अखण्डानंद त्रिपाठी उर्फ़ कालीन भईया की नजरें अब राजनीतिक पॉवर तक पहुंच चुकी है। और मिर्जापुर से आगे बढ़कर यह कहानी अब लखनऊ तक पहुंच चुकी है। लेकिन सवाल एक ही है- कौन बनेगा मिर्जापुर का राजा?
इस बार गोलू और गुड्डू कुछ जय और वीरू बनते दिख रहे। गब्बर की खैनी वाला तड़का भी सीरीज में आई है। बीना के बदन की आग अब भी भड़क रही है। और, इसकी आंच में वह कुछ नए ‘पकवान’ भी सेंकती दिख रही हैं। डिम्पी का रोल रिवर्सल हो रहा है। वह चुप रहकर बड़ा काम करने की फिराक में हैं। शबनम की अपनी अलग दुकान सज चुकी है। पुलिस अफसर को मारने के बाद पांडेजी ने अदालत में सरेंडर कर दिया है।
पूरे 4 साल बाद ‘मिर्जापुर’ का सीजन तीन 5 जुलाई से ‘अमेजन प्राइम वीडियो पर ही स्ट्रीम हो रहा है. इस बार भी यह सीरीज अपराध,हिंसा, खून खराबा, गाली गलौज के साथ ही सत्ता के इर्दगिर्द घूमता है, मगर इस बार फिल्मकार सत्ता परस्त हो कर ‘भयमुक्त’ प्रदेश बनाने की बात करने वाला यह तीसरा सीजन ले कर आए हैं और इसमें कालीन भईया या मुन्ना का भौकाल गायब है. गुड्डू पंडित व गोलू अपने ढर्रे पर हिंसा व खून खराबा को अंजाम दे रहे हैं, मगर प्रदेश की मुख्यमंत्री माधुरी यादव ‘भयमुक्त’ प्रदेश बनाने के लिए प्रयासरत हैं, जिस के चलते शरद शुक्ला, दद्दा व छोटे त्यागी के किरदार काफी शिथिल कर दिए गए हैं, जिस से दर्शक इत्तफाक नहीं रख पाता और वह बोर हो जाता है. मजेदार बात यह है कि इस सीरीज में प्रदेश की मुख्यमंत्री माधुरी यादव अपने राज्य के गृहमंत्री को विश्वास में लिए बगैर उनके मंत्रालय का काम भी खुद करते हुए नजर आ रही है. क्या ऐसा ही कुछ हमारे देश में नहीं हो रहा है
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तीसरे सीजन की कहानी वहीं से शुरू होती है, जहां पर सीजन दो खत्म हुआ था. सीजन दो के अंत में हमने देखा था कि अखंडानंद त्रिपाठी उर्फ कालीन भैया और उन का बड़ा बेटा मुन्ना दोनों पर हमला होता है. मुन्ना मारा गया था, मगर किसी ने कालीन भईया को बचा लिया था. तीसरे सीजन के पहले एपीसोड में लगभग 6 मिनट में अब तक का रीकैप ही है. जिस से पता चलता है कि कालीन भईया को बचा कर शरद शुक्ला अपने साथ ले जा कर दद्दा त्यागी के अड्डे पर छिपाया है और वहीं पर उन का इलाज शुरू करवाया गया है.
फिलहाल वह कोमा में हैं. डाक्टर उन्हें कोमा से बाहर लाने के लिए प्रयासरत हैं पर कालीन भैया यानी पंकज त्रिपाठी कहां हैं, इस की खबर किसी को नहीं. माधुरी (ईशा तलवार) अपने पति मुन्ना की चिता को आग देने के बाद मुख्यमंत्री के तौर पर प्रदेश को भयमुक्त बनाने और अपने पति की मौत का बदला लेने के लिए अपने राजनीतिक हथकंडे अपना रही है. उधर गुड्डू पंडित व गोलू ने खुद को गद्दी पर बैठा लिया है. बीना त्रिपाठी (रसिका दुग्गल), और गुड्डू पंडित (अली फज़ल) मान चुके हैं कि कालीन भईया की मौत हो गई है. पर गोलू (श्वेता त्रिपाठी) अभी भी कालीन भईया की तलाश में लगी हुई है.
कहानी के केंद्र में बाहुबली अपनी ताकत दिखाने की बजाय शतरंजी चालें चलने में मगन हैं. इस सीजन में लेखक व निर्देशक वर्तमान राज्य सरकार के मुख्यमंत्री के एजेंडे को चलाने के लिए जिस तरह से कहानी को गढ़ा, उस ने ‘मिर्जापुर’ के भौकाल को ही मटियामेट कर डाला. मिर्जापुर की गद्दी पर बैठने के बाद गुड्डू पंडित का किरदार कई दृष्यों में बचकाना सा लगता है.
जब ‘एनीमल’ और ‘किल’ जैसी हिंसात्मक फिल्में दर्शकों के सामने हैं, तो इन फिल्मों के मुकाबले ‘मिर्जापुर सीजन तीन’ काफी कमजोर हो गई है. लेखकों ने तीसरे सीजन में किरदार तो भर दिए, पर किसी भी किरदार का सही ढंग से चरित्र चित्रण नहीं कर पाए. परिणामतः कहानी भी भटकी हुई लगती है. माना कि सीरीज में राजनीति, धोखा, विद्वेष, वासना और ह्यूमर सब कुछ है पर जो रोचकता होनी चाहिए थी उस का घोर अभाव है. पूरी सीरीज में पहले सीजन में जो कालीन भईया की साजिशें थी, उन का अभाव खलता रहा. निर्देशकों ने इसे अधिक यथार्थवादी बनाने के लिए लोकेशनों का चुनाव काफी अच्छा किया है. फिल्मकार ने मिर्ज़ापुर ब्रह्मांड के विस्तारित मानचित्र और पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश, उत्तरी बिहार और नेपाल में हुए रक्तपात को समझाने के लिए विस्तृत ग्राफिक्स का उपयोग किया है पर वह दर्शक के दिलों तक नहीं पहुंच पाते. इस सीजन में पंकज त्रिपाठी के हिस्से करने को कुछ ज्यादा रहा ही नहीं. गोलू पर निर्भर गुड्डू पंडित के किरदार में अली फजल के अभिनय का वह जलवा बरकरार नहीं रहा. पहले सीजन में शर्मीली लड़की से तीसरे सीजन में लेडी डान बन चुकी गोलू के किरदार में श्वेता त्रिपाठी भी खरी नहीं उतरती. बीना त्रिपाठी के किरदार में रसिका दुग्गल के हिस्से करने को कुछ आया ही नहीं. प्यार और बदले के बीच फंसे हुए छोटे त्यागी के किरदार में विजय वर्मा कुछ दृष्यों में प्रभावित कर जाते हैं. शरद शुक्ला के किरदार में अंजुम शर्मा का अभिनय एक जैसा ही है, उस में कहीं कोई विविधता नजर नहीं आती. जबकि शरद शुक्ला के किरदार के कई आयाम हैं. मुख्यमंत्री माधुरी के किरदार में ईशा तलवार चुक गईं. रमाकांत पंडित के किरदार मे राजेश तैलंग, राउफ लाला के किरदार में अनिल जौर्ज अपना प्रभाव छोड़ जाते हैं.
मिर्जापुर 3 अपने दोनों सीजन के तुलना में काफी कमजोर है. ऐसा लगता है कि मेकर्स ने अगले सीजन के लिए सिर्फ इस सीरीज को बनाया है. क्योंकि पूरी सीरीज में सभी किरदारों को छोटा-छोटा रोल देकर उनका परिचय करवाया गया है. जिसके चलते मिर्जापुर 3 की कहानी बहुत बार भटकी हुई भी लगने लगती हैं.
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