हसदेव वन विनाश: कौन ले रहा है फैसले, सरकार या उद्योगपति?


हसदेव के जंगल में पेड़ कटने से स्थानीय आदिवासियों की आजीविका प्रभावित होगी, जबकि हाथियों सहित वन्यजीव विस्थापित होंगे और जैव विविधता खतरे में पड़ जाएगी .


हसदेव क्षेत्र में खदान खोलने का सिलसिला साल 2010 में शरू हुआ. केंद्र की कांग्रेस सरकार ने इसकी स्वीकृति दी और सूबे में बैठी भाजपा ने इसका प्रस्ताव भेजा. 2010 में केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पूरे हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन को प्रतिबंधित रखते हुए नो-गो एरिया घोषित किया था. फिर इसी मंत्रालय के वन सलाहकार समिति FAC ने खनन की अनुमति नहीं देने के निर्णय से विपरीत जाकर परसा ईस्ट और केते बासन कोयला खनन परियोजना को वन स्वीकृति दी थी, जिसे साल 2014 में ग्रीन ट्रिब्यूनल NGT ने निरस्त भी कर दिया.

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