नरेन्द्र पाण्डेय : गणेश चतुर्थी के मौके पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ के घर पहुँचते है । सीजेआई चंद्रचूड़ और उनकी पत्नी ने प्रधानमंधी का स्वागत किया। बाद में सबने हाथ में थाल लेकर गणेश भगवान की पूजा-अर्चना की… ये दृश्य सामान्य हिंदू के लिए अभिभूत करने वाला था लेकिन लिबरलों के लिए ये किसी जख्म से कम नहीं । उनके लिए स्वतंत्रता, लोकतंत्र और संविधान सब खतरे में आ गया है। कहा जा रहा है कि अब सीजेआई और प्रधानमंत्री के बीच के रिश्ते खुलकर दिखने लगे हैं। ऐसे में उन्हें आशंका है कि उन्हें अदालत से न्याय मिल सकेगा या नहीं।
रोना रोने वालों में पहला नाम आरफा खानुम शेरवानी का है। उन्हें सीजेआई के घर में पीएम मोदी को आरती करता देख उनका कलेजा फट गया । उन्होंने अपने पोस्ट पर लिखा- “इंसान जालिमों की हिमायत में जाएगा। ये हाल है तो कौन अदालत जाएगा।” उनके हिसाब से यहाँ ‘इंसान’ सीजेआई हैं और ‘जालिम’ पीएम मोदी हैं। अगर पीएम मोदी ही सीजेआई से अच्छे संबंध रखेंगे तो फिर आखिर उन लोगों की कौन सुनेगा ?
अगला नाम नेहा सिंह राठौड़ का है जिन्होंने आरती की घंटी की तुलना खतरे की घंटी से करते हुए नेहा राठौड़ कहती हैं- “जज साहब के घर गणपति पूजा की आरती में लोकतंत्र के लिए ख़तरे की घंटी बज रही है।” इस तरह अशोक धावले सीजेआई के घर पीएम मोदी को पूजा करते हुए देख कहते हैं अब न्यायाधीश चंद्रचूड़ को उनकी रिटायरमेंट के बाद राज्यसभा में पोस्ट मिलेगी, वो राज्यपाल बनेंगे या फिर अडानी बोर्ड के डायरेक्टर या हो सकता है अगले कानून मंत्री ही बन जाएँ। प्रशांत भूषण इस वीडियो को देख कहते हैं- हैरानी है कि मुख्य न्यायाधीश ने मोदी को अपने आवास पर प्राइवेट मीटिंग के लिए आने दिया। बहुत बुरा संदेश जाएगा कि जिस न्यायपालिका का काम मौलिक अधिकारों की रक्षा करना है वह सरकार के दायरे में काम करे। प्रशांत भूषण बताते हैं कि कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच दूरी होनी चाहिए।
लिबरल पत्रकार और लिबरल वकीलों के बाद कुछ राजनेता भी हैं
जिन्हें पीएम मोदी द्वारा सीजेआई के घर जाने पर आपत्ति हो रही है। शिवसेना के संजय
राउत कहते हैं कि उनकी पार्टी का मामला कोर्ट में हैं जिसमें दूसरी पार्टी केंद्र
सरकार हैं ऐसे में वो कैसे सोचें कि उन्हें न्याय मिलेगा। इसी तरह पूर्व कॉन्ग्रेस
प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी भी अपने ट्वीट में इस मुद्दे को उठाती हैं पूछती हैं
कि क्या जो महाराष्ट्र का मामला कोर्ट में है उसमें फैसला आ जाएगा या चुनाव आने तक
उसे टाला जाता रहेगा। पर दिलचस्प बात यह है कि इसी लिबरल जमात को इफ्तार पार्टी से
समस्या नहीं होती । अगर देश का प्रधानमंत्री इफ्तार पार्टी का आयोजन कराए और देश
के बड़े बड़े नेता उसमें शामिल होने जाएँ… तब इन्हें डर नहीं सताता । यह बात कोई
काल्पनिक नहीं है। साल 2009 में प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह द्वारा उनके घर
पर इफ्तार पार्टी होस्ट की गई थी और उस समय उनकी मेहमानों में एक चेहरा तत्कालीन
मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन का भी था।
आज लोकतंत्र को खतरे में बताकर चिल्लाने वालों को शायद तब
सब कुछ सही लगा हो। तब इन लोगों को डर नही सताया था । उस समय भी नहीं
जब सीजेआई ही प्रधानमंत्री के घर आकर उनसे हँस-हँस कर बात कर रही हैं तो फिर इंसाफ
कौन करेगा।
इनका ये डर आज सिर्फ इसलिए है क्योंकि देश के प्रधानमंत्री
‘नरेंद्र मोदी’ हैं और वो हिंदू धर्म को मानने वाले सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के घर
जाकर पूजा कर रहे हैं। लिबरलों के हिसाब से तो शायद सीजेआई का धर्म हिंदू है तो
उन्हें मन से नास्तिक होना चाहिए, क्योंकि अगर वो अपने धर्म का पालन करेंगे तो इस
जमात को हमेशा यही लगेगा कि जो शख्स पूजा पाठ करता है वो कैसे न्याय कर पाएगा!
लेकिन वही व्यक्ति बैठकर घर में इफ्तार पार्टी कर दे तो उसकी विश्वसनीयता इनकी
नजरों में दुगनी बढ़ जाएगी, उसमें न्याय की क्षमता आ जाएगी, उसके सेकुलरिज्म
के कसीदे पढ़ें जाएँगे।
इन लिबरलों को जानकारी होनी चाहिए कि आज जिस लोकतंत्र और
संविधान को खतरे में बताकर ये लोग सीजेआई के घर होती पूजा और उसमें शामिल हुए पीएम
का विरोध कर रहे हैं वहीं संविधान देश के नागरिकों को अनुच्छेद 25 के तहत
अपने-अपने धर्म को मानने की आजादी देता है। अनुच्छेद 25 (1) में उल्लिखित है कि
लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी व्यक्तियों
को अंत:करण की स्वतंत्रता का और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और
प्रचार करने का समान हक होगा। अब ये जमात ये तो
नहीं कह सकती न कि देश का पीएम बनने से और सीजेआई बनने से देश की नागरिकता छिन
जाती है… सच तो यही है कि जो अधिकार एक नागरिक के होते हैं वही अधिकार पीएम मोदी
और सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के पास भी हैं। ऐसे में अगर ये दोनों लोग अपने इन
अधिकारों से वाकिफ हैं और इन्हें अपने धर्म का आचरण करने में समस्या नहीं है तो
जाहिर है वो लोग इस तरह कार्यक्रमों में आ जा सकते हैं। और अगर लिबरलों के हिसाब
से जवाब नहीं होना चाहिए, तो फिर उन्हें आपत्ति का आधार इफ्तार पार्टियों
और सम्मेलनों को बनाना चाहिए जहाँ पहुँचकर कार्यपालिका और न्यायपालिका के लोग
मिलते भी हैं और उनके बीच हँस-हँसकर बात भी होती है।